Sunday, July 4, 2010

''मन का दर्द ''

आओगे तुम लौट के प्रियतम
कितनी दूर तक तन्हा जाओगे।
शायद मै तब भी यही मिलू ,
मगर मन का द्वार तुम बंद पाओगे .
मन मंदिर की हर दीवारों पर ,
अपना ही नाम तुम बस पाओगे.
गौर से पढना हर शब्दों को........
एक वाक्य तुम यह भी पढ़ पाओगे-
''साथ हमने नहीं तुमने छोड़ा था''
फिर भी बेशर्म हो नहीं शरमाओगे
अपने हर झूठे किस्सों की आड़ में,
न जाने कब तक खुद को छुपाओगे!
हर अशुंन से निकलती है अब आह,
की जिंदगी भर खुश ना रह पाओगे.
भूल कर भी तुम हमे अपना मत समझना
हम हर अश्को का क़र्ज़ चुकायेंगे।
''साथ हमने नहीं तुमने छोड़ा था''
इस वाक्य पर तब हम खूब इतरायेंगे।
बहरूपिये सा रूप बदल कर भी
तुम हमे पहचान नहीं पाओगे.........
चले थे मेरी जिंदगी उलझाने तब तक
तुम खुद ही मजाक बन जाओगे.............
अब इस दिल के दर्द को हम बहुत समझायेंगे
इन सभी दर्दो को हम शोले बनायेंगे
गलती से भी पास न आना वरना-
इस आग में हम तुझे ही जलाएंगे।
मन में इस बात को हम हरदम दोहराएंगे
''साथ हमने नहीं तुमने छोड़ा था ''
''साथ हमने नहीं तुमने छोड़ा था''