Friday, May 28, 2010

होती ना अभिशाप नारी

बचपन में होती वो भोली
लिए सैकड़ो सपनो की झोली
स्वपन परो से उडती वो बोलती है तूतली सी बोली
कभी बेटी कभी बहना
होती माँ के हाथो का गहना
कभी बहु तो कभी दुल्हन
होती माँ की अश्रुधार
नारी समाज की अभिशाप नहीं
वरन-
नारी तो मर्यादा है
सृष्टि की उपहार नारी
सृजन की श्रृंगार है
विश्व मानवता समर्पित
प्रति ग्रीवा की हार है
नारी समाज के सभ्यता की
सदयता की पराकाष्टा है
नारी समाज की अभिशाप नहीं
वरन-
नारी तो मर्यादा है ।



Monday, May 24, 2010

सन्नाटे की चादर ओढ़े,
आई कैसी रात सुहानी.......
सोया है जब जग संसार ,
मन में आतें प्रसन हज़ार।
पलके अपनी जब झाप्काऊ,
जाने किस्से मै शर्माऊ।
जानू ना क्यूँ नींद ना आये,
शायद दिल को याद तुम आते
होते जो तुम मुझे सुलाते
मिल कर उलझन दूर भगाते
तड़प-तड़प ना यू रात बिताते।
क्यूँ न मन से मन कोजोड़े
उलझन की हर गाठे खोले
मिलन हमारा हो ना जब तक,
चलो देख ले सपने तब तक...............


meri aakhein

ashk bhari in aankho ki tarife na kiya karo
ashak bhara hai inme kitna,
mehsoos kav kar liya karo.
samajhne me na bhool karo,
jheel ki nahi kahani hai.
samandar jitna gahra hai ye,
namak bhara bas pani hai.
sapne isne kav na dekhe,
socha sab manmani hai,
jhooti sav kahani hai.
chanchalta ki chadar odhe,
gahre raaz chupati hai.
khusiya hai jeevan me mere,
sab ko yahi batati hai.
mai nadan itna v na janu,
q ye jhoothi khabar failati hai.............