Monday, May 24, 2010

सन्नाटे की चादर ओढ़े,
आई कैसी रात सुहानी.......
सोया है जब जग संसार ,
मन में आतें प्रसन हज़ार।
पलके अपनी जब झाप्काऊ,
जाने किस्से मै शर्माऊ।
जानू ना क्यूँ नींद ना आये,
शायद दिल को याद तुम आते
होते जो तुम मुझे सुलाते
मिल कर उलझन दूर भगाते
तड़प-तड़प ना यू रात बिताते।
क्यूँ न मन से मन कोजोड़े
उलझन की हर गाठे खोले
मिलन हमारा हो ना जब तक,
चलो देख ले सपने तब तक...............


1 comment:

  1. क्यूँ न मन से मन कोजोड़े
    उलझन की हर गाठे खोले
    मिलन हमारा हो ना जब तक,
    चलो देख ले सपने तब तक...............
    great lines yaar
    poems aisi hi honi chahiye ki padhne wala khud ko relate kar sake......i had felt these line before reading it........
    hats off to you geet ji
    thodi tips hame bhi de dijiye

    ReplyDelete